मैं हमेशा से मानता था कि कला एक ऐसी भाषा है, जो शब्दों से कहीं ज़्यादा बयां कर सकती है। लेकिन कभी सोचा नहीं था कि कला के रंगों के बीच एक ऐसा प्रेम पैदा होगा, जो मेरी पूरी ज़िन्दगी बदल देगा।
मुझे हमेशा से पेंटिंग का शौक था। रंगों को अपनी तूलिका से कैनवस पर उतारना, मेरे लिए वो एक ध्यान की तरह था। कॉलेज में मेरे साथी भी मुझे एक अच्छा पेंटर मानते थे, लेकिन मुझे कभी अपने काम को किसी के सामने नहीं दिखाना था। मैं खुद को सबसे अच्छा मानता था, लेकिन दूसरों से तारीफ पाने का ख्वाब भी नहीं देखता था।
एक दिन कॉलेज में एक नई छात्रा आई—वह एक स्केच आर्टिस्ट थी। उसका नाम रिया था। पहली बार उसे देखा तो उसकी आँखों में एक ऐसी गहरी शांति थी, जैसे वह किसी और ही दुनिया में खोई हुई हो। उसकी पेंसिल से बनते स्केच एक अलग ही जादू पैदा करते थे। उसकी कला ने मुझे बहुत प्रभावित किया, लेकिन फिर भी मैं उससे बात करने से कतराता रहा। मुझे लगता था कि मैं उसे कभी नहीं समझ पाऊँगा। वह मुझसे अलग थी, मेरी दुनिया से परे थी।
एक दिन कॉलेज के आर्ट गैलरी में एक प्रदर्शनी थी, जहाँ सभी छात्र अपने-अपने कला के कामों को प्रदर्शित कर रहे थे। रिया ने अपनी एक अद्भुत पेंसिल स्केच रखी थी। वही स्केच मुझे पहली बार उसका ध्यान खींचने का मौका दे गया। मैंने देखा कि उसका स्केच बेहद सरल था, लेकिन उसमें एक गहरी कहानी छिपी हुई थी। मैं उसकी कला के बारे में ज्यादा जानने के लिए उसके पास गया।
“तुम्हारी स्केच बहुत सुंदर है,” मैंने संकोच करते हुए कहा।
वह मुस्कराई और धीरे से बोली, “तुम्हारा काम भी बहुत अच्छा है। तुम पेंटिंग करते हो न?”
मैं हैरान था। वह मेरी पेंटिंग को कैसे जानती थी? मैंने कभी उसे दिखाया नहीं था। फिर उसने समझाया, “तुम्हारे कैनवस पर जो रंग होते हैं, उनके पीछे की कहानी मुझे बहुत दिलचस्प लगती है।”
यह बात सुनकर मैं थोड़ा और सहज हुआ। हम दोनों ने अपनी-अपनी कला के बारे में बात करना शुरू किया। धीरे-धीरे हमारी बातचीत गहरी होती गई। हमारी कला एक-दूसरे से बिल्कुल अलग थी, लेकिन फिर भी एक अजीब सा संबंध बन गया था। मैं उसकी स्केच और पेंसिल के अद्भुत प्रयोग को देखता था, और वह मेरी पेंटिंग के रंगों और उसकी गहराई को महसूस करती थी।
एक दिन रिया ने मुझसे कहा, “तुमसे एक आइडिया मिला है। क्या तुम मेरे साथ एक कला परियोजना पर काम करना चाहोगे?”
मैं थोड़ी देर के लिए चुप रहा। मैंने कभी भी किसी के साथ साझेदारी में काम नहीं किया था। लेकिन रिया का प्रस्ताव मुझे आकर्षित कर रहा था। मैंने बिना सोचे-समझे हाँ कह दिया।
हमने एक संयुक्त कला प्रदर्शनी के लिए काम करना शुरू किया। मैं पेंटिंग कर रहा था और वह स्केचिंग। हमारा काम एक-दूसरे से मिलता-जुलता था, लेकिन उसमें एक नयापन था, एक अनदेखा रिश्ता था। हमने मिलकर जो भी बनाया, वह एक नई दिशा को दिखाता था। यह कला हमारे दिलों का अक्स बन गई थी।
हमारे काम की तरह ही, हमारी दोस्ती भी गहरी होती चली गई। धीरे-धीरे वह एक-दूसरे के बिना अधूरे लगने लगे थे। हमारी मुलाकातें अब केवल कला तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि हमारी ज़िन्दगी के हिस्से बन गई थीं।
एक दिन, जब हम दोनों एक पार्क में बैठे थे, रिया ने कहा, “तुमसे बात करके, काम करके मुझे एहसास हुआ कि कला सिर्फ हमारे काम तक सीमित नहीं है। यह हमारे जीवन का हिस्सा बन जाती है। जैसे हम दोनों मिलकर कुछ नया बना रहे हैं, वैसे ही हम एक-दूसरे के साथ मिलकर अपनी ज़िन्दगी भी बना सकते हैं।”
उसकी बातें सुनकर मुझे अहसास हुआ कि वह सही कह रही थी। कला, जैसे हमारे बीच एक पुल बनी, उसी तरह हमारा प्यार भी एक खूबसूरत रचना था, जिसे हम दोनों ने अपनी-अपनी पेंटिंग और स्केच से बनाया था।
एक साल बाद, हम दोनों ने अपनी पहली संयुक्त कला प्रदर्शनी की। वह दिन हमारे लिए सिर्फ कला का नहीं, बल्कि हमारे रिश्ते का भी एक अहम दिन था। हम दोनों ने एक-दूसरे के साथ मिलकर न सिर्फ कला के नए आयाम खोले, बल्कि अपने दिलों के द्वार भी खोले थे।
रंगों और चित्रों की तरह, हमारा प्यार भी निरंतर विकसित हो रहा था। वह प्यार, जो दो कलाकारों की सृजनात्मकता और समझ से जन्मा था, आज हमारे जीवन का सबसे सुंदर हिस्सा बन चुका था।
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