उनकी खैरियत के लिए उन से दूर हुए हम.
रोज टूटे और मजबूर हुए हम.
करते रहे वफा पर बेवफाई ही मिला मुझे.
जहां थी मेरी बस बर्बादी के ही अफसाने.
शायद इसीलिए उनके शहर से दूर हुए हम.!!
पहले दुआओं में मांगा करते थे जिसे.
अब उनकी जुस्तजू नहीं होती.
किया था जिन्होंने लाख झूठे वादे.
बस उसकी आरजू नहीं होती.
कैसे कहें उस अजनबी ने क्या शिला दिया.
उसके लिए मैंने खुद को भुला दिया.
बस इश्क ए आरजू में मशहूर हुए हम.
उसे पाने के लिए अपनों से भी दूर हुए हम.!!
काश वो ढूंढ पाते अंजान रास्तों में.
जहां सिर्फ एक सहारा होता.
दूरियां रहती थी लाख दिल में मगर.
उसने भी तो हमें दिल से पुकारा होता.
अब तो बस ख्वाहिश ही बची है जिंदगी से हमें.
एक छोटी सी दुनिया और उसमें एक जहां हमारा होता.!!
ऐसा लगता है इश्क ए दामन छूट सा गया.
कोई अपना भी हमसे रूठ सा गया.
कैसे करें यकीन यहां एक पल की जिंदगी में.
बस एहले वफा चाहत में बेकसूर हैं हम.
अब दर्द दिखाए भी तो कैसे इस जमाने में.
क्या बताएं कितने मजबूर है हम.
उम्मीद है कि वो खैरियत से होंगे.
बस इसीलिए उनके शहर से दूर है हम.
Nice poem yr
all lines is heart touching…
Kyaaaq baat h rausan dil chu liya aapne mera
Heart touching lines… Very Nice..