Baadlo ke ghar se -Yaduvanshi

बादलों के घर से..

घर के बाहर दालान में एक सफ़ेद रंग का झूला लटक रहा था , ठीक उसके सामने एक छोटा सा बगीचा जंहा पर चार सफ़ेद कुर्सियाँ और एक खूबसूरत नकाशीदार राउंड टेबल रखा था.. छोटा सा बँगला जिसकी हर चीज सफ़ेद थी उस बंगले के चारो तरफ पांच फुट ऊँची दिवार जिससे इस पार से उस पार देखा जा सकता था..
मेघालय की राजधानी शिलांग के एक कोने में बना ये छोटा सा आशियाँ भी मेघो का आलय ही था बस फर्क इतना था की ऊपर मंडराते बादलो को लोग महसूस कर सकते थे देख सकते थे पर इस बंगले में जो बादल समेटे बैठी थी उसे कोई नही महसूस कर सकता था।
लम्हा अकेली रहती थी उस सुंदर और छोटे से बंगले में.. इसे बनाने के लिए अपनी सारी जमा पूजी खर्च कर चुकी थी कुछ साल पहले मुम्बई जैसे बड़े शहर को छोड़ यहाँ बस गयी और पास के ही एक स्कूल में मानसिक तौर पर बीमार बच्चों को ज़िन्दगी जीना सिखाने लगी, थोड़ी बहुत आमदनी हो जाती थी उसी से ज़िन्दगी गुजार रही थी।
लम्हा को सफ़ेद रंग बहुत पसंद था सफ़ेद रंग का लॉन्ग अम्ब्रेला फ्रॉक घनी चूड़ियों वाले चूड़ीदार के साथ दो गज का दुपट्टा और गज़ब के उसके काले घने बाल.. चेहरे पर इतने भाव की बस उसपर कोई लेखक किताब लिख दे जब भी वह कॉफ़ी मग हाथ में लेकर बंगले की बाउंड्री पर बैठती तो आसमान से उतरी किसी परी से कम ना लगती… कॉफ़ी मग को अपने दोनों हथेलियों से कसकर पकड़ती और उस सर्द मौसम में गर्मी को महसूस करती.. एक à
��िप लेती फिर मग को बाउंड्री पर रख कर अपना चेहरे को घुटने पर टेक देती और फिर ना जाने किन ख़्यालो में ग़ुम हो जाती..
वो सबकुछ छोड़ आयी थी अपने पीछे,
सुकून की तलाश में बहुत लंबी दूरी तय की थी..
पर इंसान बाहरी शोरगुल और जगह तो छोड़ सकता है पर जो अंदर तूफ़ान मचा होता है उसे कहाँ छोड़े विडम्बना ही थी की सबकुछ छोड़ कर भी वो अपने साथ सबकुछ लेकर आ गयी थी ।
आज तो उदासी और अकेलेपन की इन्तेहाँ हो गयी  मौसम भी खूब साथ दे रहा था इस एकांत का, चारो तरफ धुँध और ऐसी ख़ामोशी जिसकी चीख़ दिल की धड़कनो को बढ़ा रही थी मेघ लम्हा का एक-एक लम्हा मुश्क़िल बना रहे थे… काफी दिनों बाद रुख स्टडी रूम की तरफ की थी लड़खड़ाते कदमो के साथ बदहवासी में चल रही थी दुपट्टा एक कंधे से गिर कर उसके पीछे पीछे रेंग रहा था… शायद अपनी किताबो के कलेक्शन में से कुछ अल्फ़ाज़ ढूँढन
े गयी थी…उसकी ख़ामोशी को आवाज़ मिली की नही पता नहीं पर हाँ किताबो के ढेर के नीचे से उसे वो डायरी फिर मिल गयी जिसे वो खुद ही छुपा के रखती थी इस आस में की वो रख कर भूल जायेगी पर हर साल इसी दिन वो डायरी मिल जाती और हर साल की तरह लम्हा  17 अक्टूबर के पन्ने पर अपनी उंगलिया फेरती और इतने तेज चीख़ती की ख़ामोशी भी खामोश होकर उसके साथ आंसुओं में बहने लगती….!

लम्हा की पिछली ज़िन्दगी कुछ यूँ थी
जिससे बे इंतेहा प्रेम की उसे अपनों की ख़ातिर छोड़ आई थी।
और जिसे अपना हमसफ़र बनायीं वो ना पुरुष था ना स्त्री… शादी के 1 हफ्ते बाद ही लम्हा को सब पता चल चूका था लेकिन मजबूर थी इस शादी के बदले उसने अपनों के लिए सुकून और शानो शौकत ख़रीदा था… नसीब में यही लिखा है तो क्या कीजै?
यही सब सोच लम्हा अपनी इस अधूरी ज़िन्दगी को स्वीकार कर ली मन लगा रहे इसलिए अकाउंटेंट की जॉब करने लगी। पर अभी लम्हा की ज़िन्दगी में तूफान आना बाकि था अभी उसका और टूटकर बिखरना बाकि था।

लम्हा के ससुर की नियत ही लम्हा के लिए नर्क साबित हुयी। वो कहते अगर समाज में पता चला बेटे की सच्चाई तो लोग क्या कहेंगे, एक वारिस पैदा हो जायेगा तो लोगो को बेटे की असलियत की भनक नही लगेगी। अपने ससुर की नियत का अंदाजा होते ही लम्हा कोसने लगी थी अपनी नसीब को पर वो हार नही मानी थी। लाख कोशिशो के बावजूद ससुर की नियत ना बदली लम्हा तिल-तिल मर रही थी।
बहुत सोचने के बाद एक दिन लम्हा वहाँ पहुँची
जहाँ आकर्ष रहता था लम्हा को बड़ी उम्मीद थी उससे.. आकर्ष सबकुछ ठीक कर देगा.. अब वो कभी लौट के नही जायेगी.. अब वो और कुर्बानियाँ नही देगी.. वो आकर्ष के साथ रहेगी..। विचारो की उधेड़ बुन में वो कब आकर्ष के फ्लैट के सामने पहुँच गयी उसे ख्याल ही नही रहा… होश सँभालते हुए लम्हा डोर बेल बजायी.. उसके हाथ कांप रहे थे.. आँखे आँसुओं से तर थी…

दरवाजा खुला.. पर ये तो आकर्ष नही फिर आकर्ष कहाँ हैं… कार्तिक लम्हा को पहचान गया उसे अंदर ले गया.. और जो लम्हा को बताया गया उससे लम्हा की दुनिया पूरी तरह से उजड़ गयी.. आज ना ऊपर आसमाँ था ना पैरो तले जमीं.. कार्तिक बताया जब तुमसे लास्ट टाइम मिला आकर्ष फिर वो कभी घर नही लौटा तुम्हारे जाने के बाद.. बैंडस्टैंड की लहरो में समाहित हो गया तुम्हारा आकर्ष… दूसरे दिन जब तुम्हारी डोली उठी थी तो आकर्ष �¤
�ी अर्थी उठी थी।
वही दिन था 17 अक्टूबर.. जिसकी वजह से लम्हा दुनिया से बेगानी हो गयी…!

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3 thoughts on “Baadlo ke ghar se -Yaduvanshi”

  1. Bahut hi sad story h….… दूसरे दिन जब तुम्हारी डोली उठी थी तो आकर्ष �¤
    �ी अर्थी उठी थी।

  2. Story ko jis trh se start kiya gya h pdh ke esa lga jese koi pariyon ki kahani hogi……..bht khubsurti se hr cheez ko byan kiya gya h ………but age ki story pdhke bht bura lga bht sad story h ……..but achchi h………

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