रात के अंधेरे में, तन्हाई का आलम था,
दिल में बसा एक सपना, अब टूट चुका था।
वो हसीन ख्वाब, जो मैंने बुन लिया था,
जिंदगी के हर मोड़ पर, उसे ही देखा था।
आसमान में उड़ता था, मैं पंख फैलाए हुए,
पर ज़मीं की सच्चाई, मुझे जकड़े हुए।
हर कदम पर धोखे मिले, वादे थे सब झूठे,
सपनों का वो संसार, हकीकत से रूठे।
वो मुस्कान जो कभी होंठों पर सजती थी,
अब आंखों में आंसुओं की नदी बहती थी।
वक्त ने किया कैसा खेल, सब कुछ छीन लिया,
मेरे सपनों को तोड़, मुझे अकेला कर दिया।
जिन राहों पर चलना था, वो राहें भी गुम हो गईं,
मन में बस चुकी तस्वीरें, अब धुंधली हो गईं।
रात के अंधेरे में, बस तन्हाई का आलम है,
दिल में बसा सपना, अब बस एक वहम है।
हर सांस में बस दर्द है, हर धड़कन में उदासी,
खोया हुआ सपना, बना मेरी जीवन की कहानी।
वो दिन फिर कभी ना आएगा, ये सच्चाई मैं जानता हूँ,
पर दिल को समझा नहीं पाता, हर पल उसे ही ढूंढ़ता हूँ।
इस अधूरी दास्तां में, बस एक उम्मीद की किरण है,
शायद कहीं, किसी मोड़ पर, मेरा सपना फिर मिले।
पर अब तो ये जिंदगी, बस एक वीरान सी राह है,
खोया हुआ सपना, अब सिर्फ यादों का साया है।
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